क्या रायका जंगल कर सकता है जेएंडके में तीसरे “चिपको आन्दोलन” का आगाज

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चन्द्र मोहन शर्मा

जम्मू के रायका के जंगल में करीब 38 हजार पेड़ काटे जाएंगे। इनमें शीशम, खैर, फुलई, बबुल, सिरीस, चीड़, पनसर और कटारी आदि की प्रजातियां है और इनको बचाने के लिए पर्यावरण प्रमियों द्वारा किये गये छोटे-मोटे विरोध प्रदर्शन क्या पहले और दूसरे चिपको आन्दोलन की यादों को ताजा कर सकते हैं।
28 जून को   माननीय मुख्य न्यायाद्यीश श्री डी वाई चन्द्रचूड़ ने रायका जंगल में नये न्यायालय परिसर की नींव रखी है। 938 करोड़ की लागत से बनने वाले इस महत्वपूर्ण परियोजना की नींव पड़ते ही यह आलोचनाओं में घिर गई क्योंकि इससे जम्मू शहर के पर्यावरण को नुकसान होने वाला है।
कुछ स्थानीय और राष्टरीय स्तर के कार्यकर्ता और एनजीओ इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे उनकी रोजी-रोटी पर तो असर होगा ही साथ जम्मू के पर्यावरण पर भी बुरा असर होगा। उनका कहना है कि जंगली जीव जन्तुओं पर इसका दुष्प्रभाव होगा। जंगल में जंगली सुअर, मोर, तेन्दुए, सांप, नेवले, लोमड़ियां और कस्तूरी मृग हैं। बात अगर कस्तूरी मृग की करें तो उसे वैसे ही प्रकृति संरक्षण के लिए

international  संघ द्वारा दुर्लभ प्रजाति का जीव घोषित किया गया है।
ऐसी भी संभावना है कि अगर रायका जंगल को छेड़ा जाता है तो जानवरों और इन्सानों का टकराव आम हो जाएगा। जम्मू में वैसे ही गर्मियों में तापमान बढ़ जाता है और जंगल काटकर वहां पर कंकरीट ढांचे बनाने से स्थिति और अधिक खराब होगी।
जनकारों का कहना है कि जम्मू पहले हरा-भरा था। बाहु-रख 60 स्कवेयर किलोमीटर तक जंगलात में फैला था और अब सरकार की अनदेखी के कारण सिमट कर मात्र 6 स्कवेयर किलोमीटर रह गया है।
लेग हैरान हैं। उनका कहना है कि पर्यावरण और नगर नियोजन संबंधी गंभीर और संवेदनशील मुद्दों पर सरकारें मनमाने और लापरवाही ढंग से फैसले कैसे कर सकती हैं।
ज्यादा समय की बात नहीं है। जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट का जम्मू बेंच पहले मुबारकमंडी में स्थित और 1990 तक वहीं पर रहौ। जानीपुर में करीब सौ कनाल की जमीन पर हाईकोर्ट परिसर बनाकर इसे 1994 में वहां स्थानातंरित कर दिया गया। अब 30 वर्ष बाद इसे कहीं और स्थानातंरित किया जा रहा है और वो भी हजारों पेड़ काटकर और कई सैंकड़ों जानवरों को बेघर करके।
हैरानगी की बात है कि सरकार इसे महत्वपूर्ण बता रही है और इस काम को पूरा करने के लिए आला अधिकारियों की निगरानी में कई कमेटियां दिन रात काम कर रही हैं।

सहमत हैं
1 . नया कोर्ट परिसर देश का सबसे बेस्ट हाई कोर्ट होगा। इसमें 35 कोटरूम होंगे और बाद में इसे 70 तक बढ़ाया जा सकेगा। नई इमारत में तीन आडिटोरियम होंगे, प्रशासनिक ब्लाक, मेडिटेशन केन्द्र, 1000 वकीलों के लिए चैम्बरस, फूड काॅम्पलैक्स आदि सब होगा।
2.  इस कोर्ट परिसर का खाका प्रसिद्ध वास्तुकार गुनीत सिंह ने तैयार किया है।उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट सहित कई इमारतों के खाके तैयार किये हैं।
3 परियोजना करीब डेढ़ वर्ष में पूरी हो जाएगी।
4 .  वन्यजीव और वन विभाग से सभी अपेक्षित अनापत्ति प्रमाण पत्र ;एनओसीद्ध प्राप्त कर लिए गए हैंय और
5 .  2ण् नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी परियोजना के पक्ष में फैसला सुनाया हैए और वहरू
6.  सभी एनओसी और बार एसोसिएशन जम्मू के समर्थन को देखते हुएए परियोजना की पूर्ति में कोई बाधा नहीं दिख रही है।

सड़क पर रहने वाले एक आम आदमी नेए जिसने कभी भी सरकार के खिलाफ बोलने के बारे में नहीं सोचा थाए महसूस कियाए, “श्किसी भी मामले मेंए भवन निर्माण परियोजना के लिए वनों की कटाई की पहचान किए गए स्थानों पर वनीकरण और अन्य आवश्यक उपायों द्वारा पर्याप्त रूप से मुआवजा दिया जाना चाहिए। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहाए ष्पर्यावरण की देखभाल करना केवल पर्यावरण कार्यकर्ताओं की ही जिम्मेदारी नहीं हैए बल्कि हममें से हर एक की है।’

जम्मू के वरिष्ठ नागरिक कैप्टन L. K ” किसी स्थान की जैव विविधताण् वृक्षारोपण और वनों में अंतर है। प्रकृति को एक जंगल बनाने में सैकड़ों साल लग जाते हैं जो अपने आप में एक संस्था है जिसमें अपना पारिस्थितिकी तंत्रए जैव.विविधताए जल विज्ञान चक्रए खाद्य श्रृंखला और बहुत कुछ शामिल है। जंगल को वहीं रहना चाहिए जहां वह है और कभी भी स्थानांतरित नहीं होना चाहिए। यह रायका वन पहले से ही तत्कालीन बाहु राख का अवशेष था।संरक्षित क्षेत्र आज के संपूर्ण गांधी नगरए नानक नगरए छन्नी हिम्मतए गुज्जर कॉलोनीए सैनिक कॉलोनीए गोरखा नगर और बावे वाली कॉलोनियों में फैला हुआ था। तत्कालीन महाराजा दूरदर्शी थे और उन्होंने जम्मू शहर के लिए तीन फेफड़े यानी बाहु रखए रोलकी रख और रामनगर राख बनाए थे। रोल्की राख को पहले से ही बख्शीनगरए शक्तिनगर और शिवनगर के लिए सम्मोहक और कुछ हद तक चालाकीपूर्ण परिस्थितियों और आसपास की बस्तियों के तहत मार डाला गया है।

रामनगर राख भारी दबाव में है। फिर जम्मूवासियों की ऑक्सीजन और ताज़ी हवा की ज़रूरतें कौन पूरी करेगाघ् यह एक विडंबना है कि वन और वन्यजीव विभाग जैसी सुरक्षा एजेंसियांए वकीलों की एक विद्वान टीम और समाज के बौद्धिक लोग इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं। यह पर्यावरण विरोधी फैसला हैण् आप अड़तीस हजार पेड़ों को काटकर न्याय दिलाने का कॉम्प्लेक्स बना रहे हैं। पौधों में भी जीवन है और हजारों पेड़ों की श्काटले आमश् और राइका वन के नाम से मशहूर उनकी मातृभूमि के लिए कौन जिम्मेदार होगा।श् उन्होंने मुझे याद दिलायाए श्जम्मू के बार एसोसिएशन ने अतीत में जम्मू और उसके पर्यावरण के हितों की रक्षा के लिए सरकारों पर सफलतापूर्वक दबाव डाला है। अब पर्यावरण संबंधी चिंताओं के साथ इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने का भी समय आ गया है।श्श् उन्होंने कहाए श्श्फैसला वापस लेने का अभी भी समय है।”

 

पहला चिपको आंदोलन

क्या आप जानते हैं कि वन्यजीव संरक्षण के लिए अमृता देवी बिश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार वर्ष 1730 में खेजड़ी वृक्ष के संरक्षण के लिए अमृता देवी और उनकी युवा बेटियों सहित खेजड़ली गांव के 362 अन्य ग्रामीणों के सर्वोच्च बलिदान की याद में दिया जाता हैघ् खेजड़ी वृक्ष के अन्य नाम कल्प तरुए रेगिस्तान के राजा और वंडर ट्री हैं। यह पुरस्कार देश में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए किए गए महत्वपूर्ण योगदान और अनुकरणीय कार्यों के लिए दिया जाता है।

दूसरा चिपको आंदोलन
दूसरा चिपको आंदोलन 1973 में भारतीय हिमालय के एक सुदूर गाँव में हुआ था। इसने अधिक वैश्विक ध्यान और समर्थन आकर्षित किया। यह चिपको आंदोलन अमृता देवी बिश्नोई की कहानी से प्रेरित था। सर्वोदय कार्यकर्ताओं ;महात्मा गांधी के शिष्य विनोबा भावे के अनुयायीद्ध के एक समूह द्वारा शुरू किया गयाए इसका नेतृत्व सुंदर लाल बहुगुणा ने किया और इसकी शुरुआत यूपी के चमोली में हुईए जो अब उत्तराखंड में है। यह वनों के संरक्षण के उद्देश्य से ग्रामीण लोगों द्वारा अपनाया गया एक अहिंसक सामाजिक और पारिस्थितिक आंदोलन था। यह आंदोलन सरकार समर्थित कटाई को रोकने के लिए था।

 

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